ज़िंदगी.....
ज़िंदगी क्या है?
क्या उसमे सुख-दुःख रोना-हँसना,
इन सब के अलावा कुछ और भी नया है?
हाँ है!
हाँ है हवा ज़िन्दगी, ज़िंदगी पानी है,
राजा है उसमें और एक रानी है,
नदिया की धार है, एक टूटी पतवार है ,
सुन्दर है, अति कुरूप है,
कहीं छाओं है, तो कहीं धूंप है,
कुँवारी किरण है, दिलों का मिलन है,
रोना है, हँसना है ,चलना है और रुकना भी है,
कोयल की कूंक, लोभी की भूख,
गरीब की गरीबी, अमीर की अमीरी,
महात्मा की भक्ति और दानव की शक्ति,
यही तो है ज़िंदगी।
सूरत है ,मूरत है, पैसों की ज़रुरत है,
अग्नि का क्रोध है, पापियों का विरोध है,
ख़ुशी है किसी चेहरे की, स्नेह के पहरे की,
नादानी किसी बच्चे की और चिंता किसी सच्चे की,
यही तो है ज़िंदगी।
एक रोती अबला की पुकार है,
दर्द के झरनों की फुहार है,
उसमेँ माँ है एक प्यारी,
और साथ उसके बच्चे की किलकारी,
सुर है, संगीत है, हार है, जीत है,
मुल्ज़िमों की राहत और जीने की चाहत,
यही तो है ज़िंदगी।
- दीप्ति त्यागी
रोना है, हँसना है ,चलना है और रुकना भी है,
कोयल की कूंक, लोभी की भूख,
गरीब की गरीबी, अमीर की अमीरी,
महात्मा की भक्ति और दानव की शक्ति,
यही तो है ज़िंदगी।
सूरत है ,मूरत है, पैसों की ज़रुरत है,
अग्नि का क्रोध है, पापियों का विरोध है,
ख़ुशी है किसी चेहरे की, स्नेह के पहरे की,
नादानी किसी बच्चे की और चिंता किसी सच्चे की,
यही तो है ज़िंदगी।
एक रोती अबला की पुकार है,
दर्द के झरनों की फुहार है,
उसमेँ माँ है एक प्यारी,
और साथ उसके बच्चे की किलकारी,
सुर है, संगीत है, हार है, जीत है,
मुल्ज़िमों की राहत और जीने की चाहत,
यही तो है ज़िंदगी।
- दीप्ति त्यागी