देखा है हमने दुनिया में,
कि कैसे रंग बदलते हैं,
कुछ बुरे-बुरे से लोग यहाँ,
अच्छे-अच्छों को छलते हैं।
चुपके से विष घोल दिया,
अमृत में इन लोगों ने,
यह विषधर के वंशज हैं,
जो लोगों जैसे दिखते हैं।
ताकत इनके हाथों में है,
यह नर्क बनाते जीवन को,
यह व्यापारी, यह लोभी हैं,
यह स्वर्ग का सौदा करते हैं।
सीता का अपमान किया,
निर्वस्त्र किया पांचाली को,
यह रावण, यह दुर्योधन हैं,
यह रूप नए नित धरते हैं।
- दीप्ति त्यागी
Very true , superb
ReplyDeleteVery true , superb
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